मानसून
मानसून के स्वागत में |
मानसून का नामकरण यद्यपि अरबों ने किया पर इसकी खोज ईस्वी सन् 48 में हिप्पोलस ने की थी। यूनानियों को सम्भवतः इससे पहले भी मानसूनी हवाओं की दिशा व समय की जानकारी थी। प्रायद्वीपी भारत के बंदरगाह नगरों में ईस्वी पूर्व की यूनानी मुद्राएं भी बड़ी संख्या में मिली है, जिससे लगता है कि उस समय भी भारत-यूनान के बीच अच्छा खासा व्यापार हो रहा था जो मानसूनी हवाओं की सहायता से ही सम्भव था। ईस्वी पूर्व 326 में सिकन्दर ने भारत से वापस लौटते हुए अपने मित्र व सेनापति नियार्कस को सिन्धु नदी के मुहाने से दजला-फरात नदी तक जलमार्ग से भेजा था ताकि मानसूनी हवाओं व फारस की खाड़ी का भौगोलिक सर्वेक्षण किया जा सके। ईस्वी प्रथम शताब्दी में लिखी टॉलेमी की ‘ज्योग्रफी’ प्लिनी की ‘नेचुरल हिस्टोरिको’ तथा इसके कुछ बाद में एक अज्ञात नाविक द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘द पेरीप्लस आफ द एरीथ्रियन सी’ में मानसून का विवरण मिलता है। हिन्द महासागर में चलने वाले किसी भी नाविक के लिए मानसून का ज्ञान अनिवार्य रहा है।
पानी को संग्रहित करने की इसी परम्परा ने शायद हम में धन के संग्रहण की भी आदत डाली और इसी कारण हम भारतीयों में बचत दर दुनिया में सर्वाधिक है। मैं ऐसा इसीलिए भी कह रहा हूं क्योंकि हम भारतीय पानी व धन दोनों के लिए द्रव्य शब्द का ही इस्तेमाल करते हैं।
मानसूनी हवाओं के चलने का भौगोलिक कारण भारत में पड़ने वाली प्रचण्ड गर्मी है। मकर संक्रांति के पश्चात् सूर्य उत्तरायण होकर कर्क रेखा की ओर बढ़ने लगता है जिससे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के तापमान में दिन प्रतिदिन वृद्धि होने लगती है, मई तक कई स्थानों पर पारा 45 डिग्री से. पार कर जाता है, जिससे हवाएं गर्म होकर ऊपर उठने लगती है और उत्तर पश्चिमी व पूर्वी जेट हवाओं के चलने से निम्न दाब का केन्द्र निर्मित होने लगता है। इस खाली जगह को भरने के लिए हिन्द महासागर से जलवाष्प से भरी हवाएं आगे बढ़ती है पर जैसे-जैसे ये वायुमण्डल में उपर उठती है इनका तापमान गिरने लगता है और नमी बूंदों के रुप में संघनित होकर वर्षा होती है।
अरब सागर से आने वाले मानसून को दक्षिण-पश्चिम मानसून भी कहा जाता है जो सामान्यतः केरल के तट पर जून के पहले सप्ताह में पहुंचता है। भारत में होने वाली अधिकांश वर्षा इसी दक्षिण-पश्चिम मानसून से होती है। लगभग इसी समय बंगाल की खाड़ी से आने वाला उत्तर-पूर्वी मानसून भी पूर्वी व पूर्वोत्तर भारत में वर्षा करता है। छत्तीसगढ़ के ऊपर ये दोनों मानसून आपस में मिलते है यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में औसत से अधिक वर्षा होती है।
मानसून सितम्बर में उत्तर भारत से लौटना प्रारंभ कर देता है। यह लौटता हुआ मानसून नवम्बर में तमिलनाडु में थोड़ी बारिश करता है, जो वहां ऊगायी जाने वाली तम्बाकू की फसल के लिए उपयोगी होता है। दिसम्बर में सूर्य दक्षिणायण हो जाता है और निम्न दाब का केन्द्र भी खिसककर बंगाल की खाड़ी पर आ जाता है। जिस कारण पूर्वी तट पर भयंकर चक्रवात के साथ वर्षा होती है। मानसून के आने से पहले मई में पूरे दक्षिण भारत में हल्की वर्षा होती है जिसे ‘मैंगोशावर’ कहते हैं क्योंकि इससे आम जल्दी तैयार होता है।
मानसूनी वर्षा की मात्रा व वितरण कई स्थानीय तत्वों जैसे समुद्र से दूरी, जंगल व पर्वत जैसे प्राकृतिक अवरोधो पर भी निर्भर कहते है। इसीलिए पश्चिमी घाट व पूर्वोत्तर भारत में उत्तर भारत की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है। चूंकि देश के विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा का वितरण असमान होता है। जिस कारण विभिन्न क्षेत्रों की वनस्पतियों और उस पर पनपने वाले जैव मण्डल में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है। भारत में इतनी अधिक जैव विविधता होने का बड़ा कारण मानूसन है। मानसूनी वन न सिर्फ मूल्यवान होते हैं बल्कि ये ग्रीष्म में पानी की बचत करने के लिए अपनी पत्तियां भी गिरा देते है। लाखों सालों से होने वाली इस प्रक्रिया के फलस्वरुप पत्तियों के सड़ने से भूमि बेहद उपजाऊ हो गयी है जो आज करोड़ों भारतीयों का पेट भरने में सक्षम है।
मानसून की पहुचने की तारीख |
मानसून भारत के फसल-चक्र को भी निर्धारित करता है। मानसून के आगमन के साथ जून-जुलाई में बुआई करके अक्टूबर तक काट ली जाने वाली फसल ‘खरीफ की फसल’ कहलाती है। इसमें चावल, कपास, जूट, मूंगफली इत्यादि अधिक पानी लेने वाली जिन्से बोयी जाती है। जबकि अक्टूबर में बोयी जाने वाली रबी की फसल में गेहूं चना, मटर सरसों इत्यादि होते है जिसमें पानी कम लगता है। भारत आने वाले यूनानी इतिहासकारों ने साल में दो बार होने वाली इस फसलों पर आश्चर्य वक्त किया है, खासकर मिट्टी की नमी के सहारे होने वाली रबी की फसल उनके लिए कौतुहल का विषय रही। इसी प्रकार का कौतूहल बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में भी व्यक्त किया है।
चित्रकोट जलप्रपात, जगदलपुर4 |
मेघों से ध्यान आया ‘मेघदूत’ का, जिसमें महाकवि कालीदास ने इन्हीं मानसूनी बादलों से अपनी प्रेयसी को संदेश भेजा था। मैं बात कर रहा था मानव व प्रकृति के अंतःसंबंधों की, तो इस संबंध में प्रकृति को धन्यवाद ज्ञापित करने का समय हमारे लिए उत्सव बन जाता है। हमारे अधिकांश त्यौहार प्रकृति को दिये जाने वाले धन्यवाद ज्ञापन ही तो है। छत्तीसगढ़ में अच्छे मानसून के लिए प्रकृति को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए ‘हरेली’ त्यौहार मनाया जाता है।
मानसून पर्यावरण के नाजुक संतुलन पर टिका हुआ है जिसे ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते प्रभाव से गंभीर खतरा है। पृथ्वी के तापमान वृद्धि से मानसून की अनिश्चितता भी बढ़ जायेगी और देश के विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ व सूखे के हालात एक समय में ही पैदा होने लगेंगे। पृथ्वी का बढ़ता हुआ तापमान एक वैश्विक समस्या है जिस पर हाल ही में ‘क्योटो’ सम्मेलन तो हुआ लेकिन विकसित देशों की हठधर्मिता के कारण कोई सकारात्मक निर्णय नहीं हो पाया। इस पर आगे क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है पर फिलहाल तो मानसून पूरे देश में वर्षा कर रहा है। यह हमारे लिए उत्सव का, अधिकता का समय है और संग्रह का भी।
एक रोचक तथ्य ये भी है कि मानसून से जुडी जेट हवाओ को हमले के लिए भी उपयोग किया गया है. जब 9 /11 को अमेरिका में हमला हुआ तो सारे पूरी दुनिया कि मीडिया ने इसे अमेरिका की मुख्य भूमि पर होने वाला पहला हमला कहकर प्रचारित किया. जबकि जापान द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ही जेट हवाओं के सहायता से अमेरिका पर हमला कर चूका था. दरअसल पर्लहार्बर के बाद अमेरिकी वायु सेना हवाई द्वीप को आधार बनाकर जापान पर लगातार बम्ब बारी कर रही थी. परन्तु जापान के पास अमेरिका की मुख्य भूमि पर आक्रमण करने योग्य विमान नहीं थी. जापानीयों ने इसके लिए एक अद्भुत युक्ति निकाली. उन्हें पता था कि जापान के ऊपर से गुजरने वाली जेट हवा की धारा प्रशांत महासागर को पर करके पूर्वी अमेरिका तक जाती है. जापानीयों ने गुब्बारों में विस्फोटक लादकर इन धाराओं में डालना शुरू किया. जो सचमुच ही अमेरिका की मुख्य भूमि पर जाकर फटे और अमेरिका को जन-धन की हानि हुई. हालाकि यह अभियान बहुत सफल नहीं था, पर अमेरिका की मुख्य भूमि पर होने वाला यह पहला हमला था.
मुहम्मद काशिफ अली गढ़मुक्तेश्वर
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